मुस्कान के कातिल
गज़ल
बैठे हैं शहर में कई, अरमान के कातिल।
ढाने लगे हैं जुल्म भी, पहचान के कातिल।।
क्या नाम बताएं भला हम आपको साहिब।
अपने ही बने हैं मेरी, मुस्कान के कातिल।।
पड़ते ही वक़्त हम पे बने हैं वो पराए।
पहचान में आने लगे, एहसान के कातिल।।
अखबार खबर छापते हैं आजकल यही।
हर एक शहर में मिलें, नादान के कातिल।।
एहसान फरामोश जमाने में बहुत हैं।
मजलूम निकलते हैं, निगहबान के कातिल।।
खुशबू ने सभी राज जमाने को बताए।
महफ़िल में छिपे हैं कहां गुलदान के कातिल।।
रावत यहां कुछ लोग नजर आ रहे हमको।
सरकार आपके दिए, फ़रमान के कातिल।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश
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Seema Priyadarshini sahay
28-Apr-2022 09:26 PM
बहुत खूबसूरत
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Renu
26-Apr-2022 10:39 PM
👍👍
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Reyaan
26-Apr-2022 04:11 PM
Nice 👍🏼
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